फादर्स डे स्पेशल


फादर्स  डे स्पेशल

हैलो दोस्तों ,

 आज मैं  जो बात लिखना चाहता हूँ वह बात दुनिया के तमाम पिताओं को समर्पित है |

अक्सर लोगों को कहते हुये सुना है माँ के कदमों में जन्नत होती है , बेशक सही बात है 

लेकिन अगर माँ के कदमों में  जन्नत है तो पिता उस जन्नत का दरबाजा होता है ये भी बिल्कुल सही बात है | 


तो कुछ अल्फ़ाज़ पिता के लिए लिखने की कोशिश कर रहा हूँ कि कैसे एक पिता अपनी सारी जिन्दगी अपने घर परिवार को पालने, अपने बच्चों की खुशी के लिए दिन रात मेहनत करता है | इस वाक़िए को कविता की शक्ल 

दे रहा हूँ | 

 

तो कहना है ,

           तपती हुई धूप में बदन मेरा जल रहा है

                                          क्या करू साहब इसलिये ये घर मेरा चल रहा है |

          सर पे मेरे बोझ की गठरी कांधो पे जिम्मेदारी है 

                                         लाख दिये ज़खम अपनों ने न हिम्मत हमने हारी है | 

         खुददारी की चादर को कफन समझ कर ओढ़ लिया है 

                                        थके हुए कदमों ने मेरी मंजिल को भी मोड़ लिया है | 

        अरे रुक जाता मैं मगर ये दिन ढल रहा है 

                                        क्या करू साहब इसलये ये घर मेरा चल रहा है | 

        रात के ठण्डे साये में जब लौट के घर मैं आता हूँ 

                                        मेहनत की रोटी का टुकड़ा मिलजुल कर जब मैं खाता हूँ | 

        खुश होते हैं बच्चे मेरे जो दिन मैं भूख से रोते हैं 

                                        फिर आस लगा कर के कल की वो चैन से घर मैं सोते हैं | 

                                                   क्यों ,

        क्योंकि मैं बाप हूँ इसलिये उनकी उम्मीदों का दिया जल रहा है

                                                    क्या करू साहब इसलये ये घर मेरा चल रहा है| 

       तपती हुई धूप में बदन मेरा जल रहा है 

                                                   क्या करू साहब इसलिये ये घर मेरा चल रहा है| 


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